Govardhan puja – गोवर्धन पूजा

Govardhan puja - गोवर्धन पूजा

Govardhan puja – गोवर्धन पूजा क्यों की जाती है – कैसे की जाती है – क्या कथा है – क्या विधि है 

भारतीय परंपराओं के अनुसार दीपावली 3 दिन की मनाई जाती है. दीपावली मुख्य रूप से तीन दिनों की होती है. नरक चतुर्दशी या रूप चौदस के रूप में दीपावली के 1 दिन पहले इसे मनाया जाता है दीपावली के दिन मां लक्ष्मी,कुबेर ,श्री गणेश, काली इनकी पूजा पूजा-अर्चना की जाती है और दीपावली के ठीक अगले दिन यानी अमावस्या के ठीक अगले दिन गोवर्धन पूजा करने की अति प्राचीन परंपरा चली आ रही है. गोवर्धन पूजा दीपावली के अगले दिन सुबह कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा पर मनाए जाने वाला हिंदुओं का एक प्रमुख और बड़ा त्यौहार त्योहार माना जाता है. गोवर्धन पूजा के दिन ही पूजा अन्नकूट मार्ग पाली आदि उत्सव भी बड़ी बड़ी धूम-धाम से मनाए जाते हैं.

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इस दिन गेहूं चावल जैसे अनाज बेसन से बनी कढी और पत्ते वाली सब्जियों से बने भोजन को हर मंदिर में पकाया जाता है. लगभग भारत के हर मंदिर में अन्नकूट बनाया जाता है और कुछ घरों में भी लोग अंकूट बनाकर श्रीकृष्ण को अर्पित करते हैं. मुख्य रूप से जहां भी श्री कृष्ण का मंदिर है वहां तो अंकूट बनाया ही जाता है इसके अलावा सभी मंदिरों में अन्नकूट अवश्य ही बनाया जाता है. गोवर्धन पूजा में गायों का अति महत्व माना जाता है गोवर्धन पूजा यानी “गो धन” गोवर्धन की पूजा इस दिन की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण के द्वारा इंद्रदेव पराजित हो जाते हैं यानी भगवान कृष्ण के द्वारा जब इंद्र को पराजित करके उनका अहंकार दूर किया जाता है तो इसी उपलक्ष में गोवर्धन पूजा की जाती है. कृष्ण लीलाओं में गोवर्धन पर्वत को उठाने की लीला तो अवश्य सुनी – देखी होगी. 

 

माना जाता है कि भगवान कृष्ण का इंद्र के मान मर्दन के पीछे उद्देश्य था कि ब्रजवासी

गोधन एवं पर्यावरण के महत्व को समझें उनकी रक्षा करें इसीलिए भगवान ने इंद्र का अहंकार तोड़ा और सम्पुर्ण प्रथ्वीवासी को एक संदेश दिया कि हमें गायों की रक्षा करनी चाहिए, पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए अन्यथा प्रकृति के महाविकराल रुप को झेलना पड़ सकता है. तो उस समय तो कृष्ण ने पर्वत को उठा कर हमारी रक्षा की थी. लेकिन आज ऐसा सम्भव नही हैं. पर्यावरण की रक्षा हमें ही करनी होगी तो गोवर्धन पूजा के दिन संकल्प कीजिए कि कम से कम 2 वृक्ष छायादार वृक्ष आप अपने घर के बाहर या कहीं भी खाली स्थान पर आप अवश्य लगाएंगे. श्री कृष्ण के द्वारा इंद्र का मान मर्दन किया गया था और इसीलिए गोवर्धन की पूजा करके श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने का इस दिन उपाय किया जाता है गोवर्धन बनाने के लिए गाय के गोबर का

प्रयोग किया जाता है तो दीपावली के ठीक अगले दिन सुबह महिलाएं अपने घर के आंगन में या घर के बाहर मुख्य द्वार के सामने गाय के गोबर का गोवर्धन पर्वत बनाती है और फिर उनकी पूजा की जाती है इस पूजा में लक्ष्मी पूजन के काम में आने वाली थाली एक बड़ा दीपक, कलश पूजा में उपयोग की गयी बची हुई सामग्री ली जाती है. ऐसा माना जाता है कि लक्ष्मी पूजन के बाद जो सामग्री हम लक्ष्मी जी को अर्पित करते हैं जो सामग्री पूजा के पश्चात शेश रह जाती है सारी सामग्री को गोवर्धन पूजा में उपयोग मे लिया जाता है. लक्ष्मी पूजा में रखे हुए गन्ने के आगे के हिस्से को तोड़ कर जो पत्ते वाला हिस्सा होता है उसे तोड़कर गोवर्धन पूजा में काम में लिया जाता है.

 

गोवर्धन पूजा के लिए जो पूजा सामग्री चाहिए

 

पूजा के लिये आवश्यक सामाग्री है रोली, मोली, अक्षत, फूल माला, दूध यानी कच्चा दूध दो गन्ने, बतासे, चावल, मिट्टी का दीपक, जलाने के लिए धूप, दीपक, अगरबत्ती नैवेद्य के रूप में फल मिठाई ले सकते हैं पंचामृत के लिए दूध, दही, शहद, घी और शक्कर से पंचामृत बनाया जाता है और भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा को पंचामृत का भोग लगाया जाता है गोवर्धन की पूजा की जाती है.

 

गोवर्धन पूजा की विधि

इस दिन प्रात प्रात काल शरीर पर तेल की मालिश करने के बाद में स्नान करने का प्राचीन परंपरा है. इस दिन आप सुबह जल्दी उठकर पूजन सामग्री के साथ में आप पूजा स्थल पर बैठ जाइए और अपने कुल देव का, कुल देवी का ध्यान करिए पूजा के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत पूरी श्रद्धा भाव से तैयार कीजिए. इसे लेटे हुये पुरुष की आकृति में बनाया जाता है. यदि आप से ठीक तरीके से नहीं बने तो आप चाहे जैसा बना लीजिए. प्रतीक रूप से गोवर्धन रूप में आप इसे तैयार कर लीजिए फूल, पत्ती, टहनीयो एवं गाय की आकृतियों से या फिर आप अपनी सुविधा के अनुसार इसे किसी भी आकृति से सजा लीजिए. 

 

गोवर्धन की आकृति तैयार कर उनके मध्य में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है नाभि के स्थान पर एक कटोरी जितना गड्ढा बना लिया जाता है और वहां एक कटोरि या मिट्टी का दीपक रखा जाता है फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद और बतासे इत्यादि डालकर पूजा की जाती है और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.

 

गोवर्धन पूजा के दौरान एक मंत्र का जाप करना चाहिए.

 

कुछ स्थानों पर गोवर्धन पूजा के साथ ही गायों को स्नान कराने की उन्हें सिंदूर इत्यादि पुष्प मालाओं से सजाए जाने की परंपरा भी है इस दिन गाय का पूजन भी किया जाता है तो यदि आप गाय को स्नान करा कर उसे सजा सकते हैं या उसका श्रृंगार कर सकते हैं तो कोशिश करिए कि गाय का श्रृंगार करें और उसके सिंह पर घी लगाए गुड खिलाएं. गाय की पूजा के बाद में एक मंत्र का उच्चारण किया जाता है जिससे लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और आपके घर में कभी धन की कमी नहीं रहती है.

 

फल मिठाई इत्यादि आप पूजा के दौरान गोवर्धन में अर्पित करिए गन्ना चढ़ाई है और एक कटोरी दही नाभि स्थान में डाल कर झरनी में से छिड्कते हैं. गोवर्धन जो बनाया जाता है गोबर का उसमें दहि डालकर उसको झरनी से छानीये और फिर गोवर्धन के गीत गाते हुए गोवर्धन की सात बार परिक्रमा की जाती है परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व दुसारा व्यक्ति अन्न यानि कि जौ लेकर चलते हैं और जल वाला व्यक्ति जल की धारा को धरती पर गिराते हुआ चलता है और दुसरा अन्न यानि कि जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं.

 

 

गोवर्धन की पूजा के बाद में एक कथा कृष्ण लीला गोवर्धन पर्वत की कथा भी कही जाती है. 

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